तुम नदी होकर भी
तुम नदी होकर भी
मेरे पास जो भी है
तुम ले लो
मेरी सुराही पानी से लबालब
सदैव भरी रहती है
तुम नदी होकर भी
प्यासी हो
बड़ी ही अभागी हो
मैं प्यासी हूं
प्यासी रह लूंगी
तुम तृप्त हो
और अधिक तृप्त हो जाओ
मेरे प्रेम के समर्पण से
अपने जीवन की विरक्तियों की
प्यास बुझाओ
मेरे लिए रुको नहीं
बहती जाओ
मैं तो तुम्हें किसी एक बिंदु से
ही स्पर्श कर लूंगी
तुम्हें पूर्ण रूप से पा लूंगी
तुम अपनी मौज में
जैसी थी वैसी ही बनी रहो
मैं किनारे पर खड़ी खड़ी ही
तुम्हारी जल की लहरों की
मंजिलों को पा लूंगी।