शीर्षक: नवउत्सर्जन
शीर्षक: नवउत्सर्जन
प्रकृति की बिसात गजब..
कहीं फूल तो कहीं कांटे दिखे
कहीं बियाबान तो कहीं रंगीनियत
कहीं अकेला दरख़्त तो कहीं बाग
पनप आती है कहीं ठूंठ में कोपलें
कहीं पत्थर के बीच बीज रूप
फूट कर निकल जाते हैं वृक्ष घने
सोचने को मजबूर कि क्या लीला हैं
प्रकृति की बिसात गजब..
घनघोर निराशा के बीच मिलती आस
होता हैं आशा का नव संचार
एक नव जीवन का सन्देश देते हुए
मानो संघर्षों के बीच से भी राह मिलेगी
करने सामना जीवन डगर का
प्रकृति के नव रुपहले जीवन को दर्शाता
नई फुहार भरती हैं जीवन को जीने में
प्रकृति की बिसात गजब..
अक्सर दुख के बाद ही सुख की आशा में
वैसे ही उग आते हैं ठूंठ भी कोंपल रूप लिए
जीवन उत्सर्जन सन्देशवाहक बनकर
फिर से आशा की और ले जाते हुए
जीवन चक्र को यथावत चलाते हुए
देती है मानव को यथोचित संदेश
देती हैं जीवन एक पुराने ठूंठ में भी
प्रकृति की बिसात गजब..