शीर्षक- बचपन की होली
शीर्षक- बचपन की होली
उम्र के इस दौर पर आकर
याद बहुत आता है बचपन
उन यादों में है शामिल
मेरे बचपन की प्यारी होली
दो दिन पहले से ही
मां की रसोई से
पकवानों की खुशबू
हवाओं में तैरने लगती थी
गुझियों की मिठास
मुंह में ही नहीं
दिलों में उतरने लगती थी
होली का हल्ला हो
कंडा लकड़िया दो
घर घर के बाहर यह आवाज
जोर शोर से गूंजने लगती थी
घर घर से इकट्ठे करके
होलिका का पंडाल बनाया जाता
बुराई पर अच्छाई की प्रतीक का
पावन पर्व मनाया जाता
अगले दिन चौबारे पर
दादा जी पैसे लेकर बैठते थे
हर आने जाने वाले को
गुलाल लगाकर
चवन्नी जरूर देते थे
रंगों से ही नहीं
प्रेम से भी दिल सरोवार हो जाया करते थे
उम्र के इस दौर पर आकर
याद बहुत आता है बचपन
उन यादों में है शामिल
मेरे बचपन की प्यारी होली।