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Kamini sajal Soni

Abstract

2.8  

Kamini sajal Soni

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शीर्षक- बचपन की होली

शीर्षक- बचपन की होली

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283


उम्र के इस दौर पर आकर

याद बहुत आता है बचपन

उन यादों में है शामिल

मेरे बचपन की प्यारी होली


दो दिन पहले से ही

मां की रसोई से

पकवानों की खुशबू

हवाओं में तैरने लगती थी

गुझियों की मिठास


मुंह में ही नहीं

दिलों में उतरने लगती थी

होली का हल्ला हो

कंडा लकड़िया दो


घर घर के बाहर यह आवाज

जोर शोर से गूंजने लगती थी

घर घर से इकट्ठे करके

होलिका का पंडाल बनाया जाता


बुराई पर अच्छाई की प्रतीक का

पावन पर्व मनाया जाता

अगले दिन चौबारे पर

दादा जी पैसे लेकर बैठते थे


हर आने जाने वाले को

गुलाल लगाकर

चवन्नी जरूर देते थे

रंगों से ही नहीं


प्रेम से भी दिल सरोवार हो जाया करते थे

उम्र के इस दौर पर आकर

याद बहुत आता है बचपन

उन यादों में है शामिल

मेरे बचपन की प्यारी होली।


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