शहरों की सड़कों पर
शहरों की सड़कों पर
शहरों की सड़कों पर
कई अरमान तड़पते देखे
बोझा उठाए जाने किसका
उसके प्राण अटकते देखे
जीवन से लड़ता संघर्ष करता
अपना मूल्य उसने आंका है
जीवन के इस भागा दौड़ी में
आज उसे रोटी-रोटी रटते देखा
कहीं भूख से बिलख रहे
कहीं निर्बल पैर थकते देखे
सड़कों पर आवाज लगाते
बच्चों को करतब करते देखा
जीवन है उनका भी गतिमय
कई बार उन्हें हार मानते देखा
क्यों दंड मिल रहा निर्बलता का
कुछ आंखों में आंसू बहते देखा
स्वार्थी इस संसार में
कई लोगों को उन पर हंसते देखा
उनकी मुख पर लिखी व्यथा
कौन गौर से पढ़ता है?
शहरों की सड़कों पर
कई अरमान तड़पते देखे
बोझा उठाए जाने किसका
उसके प्राण अटकते देखे
सोच रहा हूं
कब उनकी तकदीर बदल जाएगी?
थोड़ी-थोड़ी सुबह
कब उनके हिस्से आएगी?
कितने बच्चे मां की छाती पर
रोते और बिलखते हैं
रोते -रोते ही सो जाते हैं
शहरों की सड़कों पर
कोई संघर्ष करता देखा
कोमल बच्चों का भविष्य
सृजन अधूरा देखा
पसलियां भूख से
अब पीठ सी दिखती है
झुके हुए कंधों पर
जिम्मेदारी का बोझ उठाते देखा
शहरों की सड़कों पर
कई अरमान तड़पते देखे
बोझा उठाए जाने किसका
उसके प्राण अटकते देखे।