STORYMIRROR

Sagar Wagh

Romance

2  

Sagar Wagh

Romance

शहर

शहर

1 min
192

कुछ बाकी था उस शहर में

जहाँ अक्सर मेरा आना जाना था,

कुछ छूटा था उस गलियों में

जहाँ मैं हर रोज गुजरा करता था,

आज भी वो शहर सुना-सुना सा

लगता है,

आज भी वो गलियाँ खफ़ा-खफ़ा सी

लगती है,


न जाने क्या छूट रहा था हाथ से मेरे

आज भी आकर तेरा इंतज़ार कर

रहा था उन गलियों में ,

आज भी उस शहर की हवाओं में नज़र

आती हो तुम,

आज भी लिखे वो ख़त बिखरे पड़े हुए है

तुम्हारी यादों में ,


ज़्यादा कुछ कहना नहीं था तुमसे

बस एक आखिरी ख़्वाहिश थी मिलने की,

अब तो वो गलियाँ और शहर जल रहे है

तुम्हारी यादों में ,

कब लौट के आओगी तुम मालूम नहीं था

आ के बुझा देना शमा मेरी

जो जल रही थी उस शहर की गलियों में ।



Rate this content
Log in

More hindi poem from Sagar Wagh

Similar hindi poem from Romance