शहीद - एक श्रृदाजंली
शहीद - एक श्रृदाजंली
धन्य हैं जो देश की खातिर, जान निछावर करते हैं
वो शहीद रहते है दिल में ,कभी मरा नहीं करते हैं
जिन्होंने अपने लहु से लिख दी, देश की अमर कहानी को
जो हसते हसते मातृभूमि पर लुटा गये अपनी जवानी को
तनी थी वो कठिन चढाई, दुर्गम पहाड़ी और वो खाई
जान पर अपनी खेल कर तुमने, तोड़ दी दुश्मन की चतुराई
जो रूके नहीं और झुके नहीं कभी, युद्ध के उन तूफानों से
जिनके लौह बदन टकरा गये, राह की बड़ी बड़ी चट्टानों से
ठंडी और तूफानी हवायें भी, जो अपने बदनों पर झेल गये
जिनको होली के रंग छू पाये न,वो भी लाल रंग में खेल गये
जो होकर के निडर सिंह से, दृढ़ कदमों से चलते है
वो शहीद रहते है दिल में ,कभी मरा नहीं करते हैं
मां कहती है कसम तुम्हें है ,मेरे दूध का कर्ज चुकाना तुम
सीने पर हजारों वार हों लेकिन, पीठ नहीं दिखलाना तुम
यह धरती भी तेरी मां है, जाकर तुम रक्त श्रृंगार करो
जिस दुश्मन ने आंख दिखाई, उसका तुम संहार करो
जीना मरना विधी हाथ है, फिर डरना क्या इन बातों से
डगमगाये कदम कभी भी न,जीवन की कटीली राहों से
वीरांगना बनकर पत्नी खड़ी है, लिए हाथों मे दीप थाली
आसुओं को छुपकर है पोंछती, होठो पर मुस्कान निराली
कल न बाजेगी रुनझुन पायल और न ही चूड़ी ही बोलेगी
न माथे का सिंदूर और बिंदिया,कोई भेद जिया के खोलेगी
जिनकी सिंह गर्जना से, हृदय दुश्मन के कंपते है
वो शहीद रहते है दिल में,कभी मरा नहीं करते हैं
अपनी धरती, अपना पानी,बांट दिया आकाश -समुंदर
कहीं पनपती नफरतें हैं तो, कहीं दर्द है दिल के अंदर
दुश्मन पर जो झपट गये थे, डरे बिना उन बहादुर चींतों को
आंसू और फूल समर्पित हमारे, देश के वीर शहीदों को
तुम तो अपना नाम लिखा गये, देश के वीर अमर सपूतों में
हमें बचाते बचाते ही सो गये, अपनी जांन लुटा ताबूतों में
चट्टानों और पहाड़ों पर जो,गलती हुई हवाओं पर जो
नभ मंडल के तारों पर जो,समुद्र की जल धारों पर जो,
अपने खून की स्याही से अमिट नाम लिखा करते है
वो शहीद रहते है दिल में, कभी मरा नहीं करते हैं
धन्य हैं जो देश की खातिर, जान निछावर करते हैं
वो शहीद रहते है दिल में, कभी मरा नहीं करते हैं।