शब्दों के मोती
शब्दों के मोती
मन के दरवाजा खटखटाके,
रात को निंद से जगाते हो।
कलम थिरकते ही काग़ज़ के पन्ने पर ता, ता थैया करते हो।
शब्द नहीं जैसे बेहतरीन नृत्यांगना हो।
क्या रात क्या दिन
क्या खाना क्या सजना
संवरना।
तुम कुछ नहीं सुनते हो।
बरसात देखें नहीं,
त्यौहार मनायें नहीं,नदी, खेत-खलिहान घूमें नहीं।
गुंजने लगेकान में भंवर की गाने।
तुम्हारे मोहसे कैसे रोकूं अपने को।
तुम्हारे मायाजाल से बन्धन बांध चुकी हूं।
अब निकलना मुश्किल।
जीना मरना तुम्हारे संग यहीं।
