शब्दों का समंदर आघात देता है।
शब्दों का समंदर आघात देता है।
कठोर शब्दों के तीक्ष्ण वार से ,
अश्रु समन्दर सा बह जाता है।
खारा जल कपोल पर ढुलककर,
मन पर कई आघात दे जाता है।
वाणी की महिमा बड़ी अनोखी ,
हिय तराजू से तोल कर बोलो।
आखर आखर में अर्थ भरा है
अमृत सी मीठी बोली बोलो !
शब्दों की अग्नि से जो झुलसा,
उसका हृदय दग्ध हो जाता है।
खारा जल कपोल पर ढुलककर,
ह्रदय पर कई आघात दे जाता है।
घायल करते यूँ कटु शब्द मन को,
परन्तु तन में चिह्न दिखे न कहीं भी।
हर पल उसमें पीड़ा का सागर छलके,
मन का गहरा घाव भरता ना कभी भी!
मन मस्तिष्क पथराया सा लगता है,
और हृदय में दुख अनंत दे जाता है।
खारा जल कपोल पर ढुलककर,
मन पर कई आघात दे जाता है।
कम ही बोलो पर ज़रा मीठा बोलो,
जब भी तुम अपना मृदु मुंह खोलो।
अंतस तक़ ज्योति से चमका कर,
हर अक्षर मोती की तरह पिरो लो।