शब्दों का जाल
शब्दों का जाल
किसी दृश्य को देखते हुए
किसी वस्तु का स्वाद लेते हुए
गाने के मुखड़े को सुनते हुए
फूल को सूंघते हुए
किसी को भी छूते हुए
हम शब्द ढूंढने लगते हैं
उसे वर्णन करने के लिए।
या फिर किसी पुराने अनुभव से तुलना करने लगते हैं।
दृश्य, मुखड़े, स्वाद, सूंघना,
कोई छुअन,
हम इस वर्तमान एहसास को
अपने अंदर आत्मसात ही नहीं
करते
न ही उसका आनंद लेते हैं
केवल शब्द ढूंढने लगते हैं
बखान के लिए।
हम भूल जाते हैं
शब्दों की दुनिया बहुत छोटी है,
सीमित और संकरी है।
हम उस अनंत,
अपरिमित,
नि:सीम,
नि:शब्द का अनुभव ही नहीं करते।