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Bhawna Kukreti Pandey

Abstract

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Bhawna Kukreti Pandey

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शब्द

शब्द

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मैंने जाना

शब्दों पर जाना निरी मूर्खता है।

शब्दों से 

सोच को बांधते , मोड़ते हैं लोग

चंद घाघ लोग।

जब कहते है

वे चंद लोग कि 

शब्द व्यक्तित्व का आईना होते है

मुस्कराते हैं हम 

मन ही मन

कि ये पिछली सदी 

की बात रही।

अब शब्दों के श्रृंगार से

सुंदर दिखती है भयंकर कलुषित 

मानसिकता भी ।

शब्द आडंबर का

एक नया चलन भी नहीं है

व्यवहार में भी झलकता

रहा है कि बार शब्दों की 

निराई का असर।

यकीन इसलिए भी 

नहीं कर पाते कि 

कलम से रिस कर 

हौले हौले

इधर भी शब्दों ने भी सीख ली है

मरहम बन कर 

घाव ताज़ा करने की 

कला।

सो क्षमा....



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