शैतानियाँ बचपन की
शैतानियाँ बचपन की
याद आती है बचपन की वो मासूम नादानियाँ,
खट्टे- मीठे पल ढेर सारी मस्ती और शैतानियाँ,
दादी से जिद्द करके सुनना रोज नई कहानियाँ,
कितनी सुखद और खूबसूरत हैं वो निशानियाँ,
गलती करने पे भी पापा का प्यार से समझाना,
शैतानियाँ करके वो माँ के आंचल में छुप जाना,
अपने अटपटे सवालों से सबको परेशान करना,
झूठे आंसू बहाना फिर मासूमियत से मुस्कुराना,
पेट दर्द बना करता हमारा सबसे फेवरेट बहाना,
और मन ही मन मुस्काते आज स्कूल नहीं जाना,
कुछ ही पल में उस पेट दर्द का छूमंतर हो जाना,
झूठ बोलते पर सच्चा था वो बचपन का ज़माना,
जिद्द करके अपनी हर छोटी बड़ी बात मनवाना,
हकीकत से दूर सपनों की दुनिया में खोए रहना,
अपनी धुन-अपनी मस्ती अपना ही होता ताराना,
महकता ये बचपन है यादों का अनमोल खजाना,
दोस्तों के साथ लड़ना, झगड़ना, रूठना, मनाना,
मतवाला होकर चंचल तितलियों सा उड़ते जाना,
मन को भाता रोज-रोज आसमान में तारे गिनना,
कितनी अठखेलियों से भरा है बचपन का जमाना,
जितनी भी शैतानियां करनी है कर लो बचपन में,
फिर यह मौका ना मिलेगा जिंदगी की उलझन में,
सुहाने से ये लम्हे ये पल किसी दौलत से कम नहीं,
बचपन के इन पलों को संजोकर रख लो यादों में।
