STORYMIRROR

Madhu Vashishta

Inspirational

4  

Madhu Vashishta

Inspirational

शाश्वत जीवन

शाश्वत जीवन

2 mins
393

जीवन तो चलता ही रहा

आगे को बढ़ता ही रहा।

एक उत्साह सा था उस जीवन में

कुछ उम्मीदें भी तो थी मन में।

हर नया दिन जो भी जाता था।

उम्मीदें नई जगाता था।

बचपन करता था जवानी की इंतजार।

जवानी आई तो थी साथी की इंतजार।

खुद पे ही रीझे रहते थे

देखते थे आईना कई बार।


तब

जब बचपन को दूर खड़ा देखा।

जवानी की जोश में किया उसे भी अनदेखा।


फल रही थी सब की दी हुई बचपन में दुआ।

समय बीत रहा था तब सिर्फ अपने घर को बसाने में

भूल गए थे हम खुद ही खुद को

अपने बच्चों का भविष्य बनाने में।


अचानक आंख खुली तो देखा जवानी भी बीत गई ।

अब आगे खड़ा बुढ़ापा था।

बच्चे भी बड़े हो गए थे 

पर अब 

अपने और माता-पिता और बुजुर्ग भी इस दुनिया से कूच कर गए थे।


अब जब नींद से जागे कुछ ऐसा लगा।

जीवन की संध्या आने पर अब कुछ अंधेरा सा लगा।

जाने क्यों कर मैं अब खुद को अब परेशान सा लगा।

घबराहट और पुरानी यादों ने सोने ना दिया।

आगे के जीवन को सही रखने के लिए मैंने क्या क्या ना किया।

यूं ही सोच रहा था क्या किसी को मेरी अब भी कोई जरूरत थी।

मैं सबके एक बार आने के इंतजार ही करता रहा।

सब के रास्ते में आंखें बिछाए बैठा रहा।

मेरे अपने छोटे अब मुझे उनकी जरूरत थी।


लेकिन उनकी जिंदगी में मेरी भला क्या अहमियत थी।

उनकी जिंदगी में भी तो बेहद व्यस्तताओं की सरगम थी।

जिंदगी अब भी बची है तो कोई कारण भी होगा।

समस्याएं खड़ी है तो कोई समाधान भी होगा।

मोह छोड़ कर देखें तो परमात्मा साथ ही खड़ा होगा।

कुछ ऐसा ही ख्याल मेरे मन में भी आया ही होगा।

जीवन के संध्याकाल में सब कुछ छोड़ कर सिर्फ परमात्मा पर विश्वास जगाएं।


संसार के लिए तो बहुत कुछ करा,

अब बाकी का समय क्यों ना प्रकृति परमात्मा और पर्यावरण पर ही लगाएं।

जीवन में आए हैं तो संसार को क्यों ना कुछ देकर जाएं।

सबके मन में क्यों ना अपनी यादों के फूल खिलाएं।

जीवन नश्वर है माना हमने,

समय रहते ही क्यों ना सब नश्वरताओं को छोड़कर हम शाश्वत पर ध्यान लगाएं।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational