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Rita Jha

Abstract Classics Fantasy

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Rita Jha

Abstract Classics Fantasy

शाम और हम

शाम और हम

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दूर गगन में जब रवि अस्ताचलगामी होता

यमुना तट शाम में हमारा प्रेम मिलन होता


कितना उल्लासित जीवन का पल होता।

संग विचरण करते शाम की तन्हाई में हम

वो पल वे सुकूं के दिन जानें कहाँ खो गए  

जब प्रणय बंधन में बंधे एक दूजे के हो गए।


अब तो न वो शाम आती है न वो तन्हाई

हर पल जीवन में भागदौड़ रहती समाई।

कभी दाल रोटी का रोना लिए शाम आती है

जिंदगी चक्र में कुछ पल का विराम लाती है।


गृहस्थी की चक्की में पिसते हुए,शाम आती है।


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