सफ़र का सामाँ तो है…
सफ़र का सामाँ तो है…
सरक रहा आहिस्ता-आहिस्ता आसमाँ तो है
निकल रहा दम के साथ-साथ अरमाँ तो है!
जल रहा है रोज़ आँखों के आगे धुआं-धुआं
हसरतों से बनाया था जो वही मकाँ तो है !
टूटे कई रिश्ते-नाते...बिछड़ गए कुछ अपने
अश्क न सही आँखों में, दिल परेशाँ तो है !
दिखते हैं जो ख़ाली-हाथ, नज़र का धोखा है
चंद शेर, कुछ नज़्में, सफ़र का सामाँ तो है !
सुधरने से पहले इनका बिगड़ना है लाज़िम
बदलेंगे हालात सबके ऐसा कोई इम्काँ तो है !
बिल्कुल ना होने से कुछ होना कहीं बेहतर
डगमगाया हुआ ही सही, अभी ईमाँ तो है !
उस रब पर भरोसा है... मोजज़ों पे यक़ीन
हुआ ना बेशक आज तलक एक गुमाँ तो है !
लाज़िम: आवश्यक; इम्काँ: संभावना; मोजज़ा: चमत्कार; गुमाँ: अंदेशा/उम्मीद