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Neeraj pal

Inspirational

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Neeraj pal

Inspirational

सेवा।

सेवा।

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हे विधाता ! तेरी लीला अपरंपार, कोई निर्धन है तो कोई धनवान ।

 ऊँच-नीच के चक्कर में, मदमस्त हुआ जाता इंसान ।।


 किसी के घर में पकते पकवान, जिसको समझता अपनी शान ।

 छप्पन भोग प्रभु को चढ़ाता, कभी न देता निर्धन पर ध्यान ।।


 आलीशान महल बनवाता, संग्रह- परिग्रह में घिरा अनजान।

 खूब जानता न जाएगा कुछ भी, फिर भी उसको कितना अभिमान ।।


 विकासवादी संस्कृति के कारण, भूल बैठा अपने को नादान ।

 परस्पर सहयोग की बात तो छोड़ो, अपने को ही समझता भगवान ।।


 स्वार्थी बन जीवन है बिताता, अपना ही करता यश गान ।

 धन के सूत्र से सभी बंधन है जुड़ते, तभी करते तेरा सम्मान ।।


 अहंकार बस इतना डूबा रहता, परमार्थ का हो कैसे ज्ञान ।

 प्रारब्ध का फल सब हैं भोगते, क्यों समझता अपना अपमान ।।


 अगर चाहता तू परमार्थ सुख को, अपने को तू तुच्छ जान ।

" नीरज" तू कर ले सबकी "सेवा", अंत समय में होगा परेशान ।।


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