सेतु-मंथन
सेतु-मंथन
ये सेतु है विश्वास की, ये सेतु है कर्मयोग की...
सत्युग से कलयुग की, संस्कृति से समृद्धि की...
ये सेतु है सेवा भाव की, ये सेतु है निर्माण की...
परस्पर सहयोग की, मनोहर चिंतन की...
ये सेतु है अथक परिश्रम की, ये सेतु है ईमानदारी की...
जब दिल में वो जज़्बा हो, जिसकी नींव
"मैं" से "हम" तक की अमृतयात्रा का आगाज़ हो...
जीवन की उमंग अमृतसागर-सा पावन हो,
तब इस कदर उम्मीदों का काफिला निकले,
जो हम सबको एक साथ मिलाकर
उस मंज़िल की तलाश में चल निकले
इस पार से उस पार...
जहाँ से कामयाबी का सही नतीजा निकले...
अब तो सर उठाकर चलने की बारी है...
चलिए हम सब निकल चलें
एक लौ को आधार बनाकर
हरेक अंधेरी रात को उजाला देकर...!
ये सेतु-मंथन है विवेक-बुद्धि-बल की...!
ये सेतु-मंथन है अनंत काल की...!
ये सेतु-मंथन है कर्तव्यपरायणता की...
निरलस चिंतन की,
नियमित सत्य-शुद्ध-सम्यक अध्ययन की, राष्ट्रहित में स्वयं को न्यौछावर करने की...!!!
निस्संदेह हम सबके मन में एक सशक्त सेतु है
चिंताधारा को सामर्थ्य से केन्द्रित करने की,
मानव कल्याण हेतु अपना योगदान देने की...
चलिए, स्वयं को भी समझें..!!!