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Dev Sharma

Inspirational

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Dev Sharma

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सच मे तुम भीम थे

सच मे तुम भीम थे

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ये भारत विशाल जब आजाद हुआ तो,

जरूरत थी भारत संविधान रचना की।

तब बाबा तुम खिवैया बन प्रकट हुए थे

ले संकल्प नव सोच नव कृति संरचना की।।


तुम वीर थे अपनी अद्वित्य सोच के,

जो हर बुराई से भी बचना जाने थे।

तभी लाख हीरों में कोहिनूर बन चमके,

गुण सब देश ने तुम्हारे सहर्ष माने थे।।


जब सब सिर्फ बोलना ही जानते थे,

तब तुमने कुछ कर के दिखाने की ठानी थी।

सब जातियों को एक सूत्र में बांध दिखाया,

हो निडर हर बुराई भी खुद ही सम्भाली थी।।


ज जाने कितने तुमपे अंगारे बरसे,

कितनी हुई वर्षा शब्दों के बाणों की,

पर तुम न अपने लक्ष्य से अडिग हुए,

रचा इतिहास इबारत लिखी गुणगानों की।।


मैं से बहुत ऊपर मूल्य समझा आपका, 

मांगा कुछ नही सिर्फ दाता बन उपकार किया,

बंट रहा था जो देश जाति धर्म के नाम पे,

जीवन सब का सब बराबर सत्कार किया।।


बहुत हुआ जब विरोध जब भेदभाव का तो,

ले शरण बौद्ध धर्म की प्रेम प्यार प्रसार किया।

सिखाया दुनिया को आदर भाव इक पाठ नया,

अपने ज्ञान चक्षु से आलोकित कुल संसार किया।


पाल कर भेद भाव के अंकुरित बीज को,

कुछ भी तो न हासिल कर पाना संम्भव है।

नफरत की प्रचण्ड ज्वाला भड़का कर तो

कहाँ पाठ मानवता का पढ़ाना सम्भव है।।


ऐसे ऐसे महान सन्देश दे कुल जगत को,

तुमने मानव को मानवता का नया सन्देश दिया।

सच्चे धर्म का अंकुरित बीज बोकर मन में,

सब जन का दूर मन व्याप्त क्लेश किया है।।


        


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