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Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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सबला

सबला

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नारी तुम सबला हो ।

क्यों कर पहले अबला थी ।

नारी तुम खुद पर निर्भर हो ।

क्यों कर पहले पर निर्भर थी।

नारी तुम शक्ति हो। 

 हर दुख को अपने में समाही हो।

मान हो,अभिमान हो। 

तुम इस देश की शान हो।

 छूकर आसमाँ करती सबके मन को बलवान हो।

प्रकाश पुंज बन देती 

सबको पहचान हो।

तारों का ताज सजे ऐसी तुम महिमावान हो।

 टूटे मन को सहलाती उम्मीद का तुम चांद हो।

 हर सवाल का जवाब बन।

 खुशियों का पैगाम हो।

 देश की धड़कन का प्रतिबिंब हो।

शक्ति स्वरूपा,शांति रूपा 

हाथों की लकीरें बनाती हो।

 मकान को घर बनाकर उम्मीद की किरण जगाती हो।

पर्वत की चढ़ाई हो या समुद्र की गहराई हो।

 हर जगह अपना वर्चस्व बनI आई हो।

 सर्वत्र विकास की रखती जुस्तजू हो।

 चाहते हैं सब तुमसे रूबरू हो ।

 तुम परिवार की बरकत हो ।

सबका सहारा बनो इसके लिए सदैव तत्पर हो ।

 अपने हर रंग से भर देती सबमें उमंग हो।

 विश्वास की डोर हो, परवाज लेती पतंग हो।

जीवन का संगीत हो ।

 रखती सबसे प्रीत हो ।

नारी क्या परिचय दूँ तुम्हारा।

तुम खुद एक परिचय हो ।


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