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kusum prashar

Inspirational

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kusum prashar

Inspirational

सबक

सबक

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पंखों की चाहत ने मुझे परिंदा बना दिया

सभी मूल्यों को छुड़ाकर

उड़ने का गुर सिखा दिया।।

    लालसाएं हुई है हावी

     ज़मी से पांव को उठा दिया

     नभ पे छाए टिमटिमाते जुगनुओं ने

     मुझे मूक-बधिर बना दिया।।

 मोह-माया के मकड़ जाल में

 जज्बातों को उलझा दिया

  रक्तरंजित प्रवाह की धारा को

  नीर जैसा बना दिया।।

                   घमंड तनी कंठा ने

                   हाथों की गरिमा को छुड़ा दिया

           भूल गया माटी का मोल

                   माटी में ही मिला दिया।।

 परिंदा ही परिंदा कहलाए

दाना चुगने धरती पर उतर आए

सुनहले पंखों की उड़ानों ने

मुझे भी सबक सिखा दिया ।।



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