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shraddha shrivastava

Abstract Inspirational

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shraddha shrivastava

Abstract Inspirational

सौ सौ बार बिखरी हूँ मै

सौ सौ बार बिखरी हूँ मै

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सौ सौ बार बिखरी हूँ मै सौ सौ बार निखरूंगी मैं

एक दरवाज़ा बन्द करोगे तो दूजे से निकलूंगी में !

गुलाब के काँटे की तरह चुभ जाऊँगी किसी को

तो किसी के हाथों को महकता छोड़ जाऊँगी !


एक प्रलोभन तुम देते मुझको एक प्रलोभन में खुद खोजोगी,

एक शिखर से तुम गिराते भी गर तो

एक शिखर में अपना खुद खोजोगी!

सौ सौ बार बिखरी हूँ मै सौ सौ बार निखरूंगी मैं

एक दरवाज़ा बन्द करोगे तो दूजे से निकलूंगी में !


अज्ञानी हूँ तो क्या हुआ मन के भेद पढ़ लेती हूँ

मेरे यार की आँखे ना भी भीगे तो भी

मैं उन आँखों का गीलापन पढ़ लेती हूँ !

सौ सौ बार बिखरी हूँ मै सौ सौ बार निखरूंगी मैं

एक दरवाज़ा बन्द करोगे तो दूजे से निकलूंगी में !


अंदाज़ बदल लेती हूँ आवाज़ मेरी एक ही है

चेहरा मेरा एक ही है बस नकाब में कभी

कभी दो चार घर मे युही रख लेती हूँ !

सौ सौ बार बिखरी हूँ मै सौ सौ बार निखरूंगी मैं

एक दरवाज़ा बन्द करोगे तो….........


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