सावन
सावन
गरमी से तपती धूप में, जीवों को बिलखता देख
रो पड़ा अंबर बोली बिजली, बरसी बूंदें अनेक II
बच्चे बूढ़े सब को ही,
था इंतज़ार इस मौसम का
आया है तो लगता है
लौट आया है पल यौवन का
सावन में भैया और बहने
डूबे सोच में लगे कहने
न मारो नारी को वरना
क्या होंगे राखी के मायने
छप छप छप छप
रिमझिम रिमझिम
धड़कनों की आवाज़ है उनकी
किसान, मजदूर, जरूरतमंद
बारिश जीवन रेखा है जिनकी
प्यारा ये मौसम है
फिर भी प्रकृति से यही अनुरोध है
कम वर्षा नाराजगी है
तो ज्यादा भी तो क्रोध है
आओ हम मिलकर करे यह प्रण
प्रदूषण न करके, जीतें प्राकृत का मन
अब के बरस सावन में करती हूँ आशा यही
रहे खुशहाल बेटियां तो रहेगी खुशहाली ।