साथी
साथी
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ये एक अधुरी कहानी है
प्यार हमारी रुहानी है
दिल में मची है हलचल
तुम बीन कैसी ये हवा चले विरहन के
ओ साथी मन के ।।०।।
कैसे लिखूं मैं पूरी कहानी
उस अधूरे बंधन के
ओ साथी मन के ।।१।।
तुम आये तो बहार आया
खिल उठा चमन मेरे आँगन के
ऐसा लगा जैसे ये रिश्ता है जनम जनम का
ओ साथी मन के ।।२।।
ख़्वाहिश है एक शाम
लिख दूँ मैं तेरे ही नाम
और मदहोशी में तुम
कुछ पल चुरा लो मेरे जीवन के
ओ साथी मन के ।।३।।