साथी और नाव
साथी और नाव
तुम कौन हो ?
जिसकी मुझे,
हमेशा तलाश रहती है,
मेरे साथ साथ हर कदम पर,
हाथ पकड़ थाम लेता है,
तुम कौन हो ?
मेरी डगमगाती जीवन की नाव,
में खिवैया बनकर आ जाते हो,
मुश्किलों से पर लगा जाते हो,
तुम कौन हो ?
जिससे मैं अपने जिया की,
हर बात स्वाभाविकता से कह देती हूं,
किंचित मात्र भी भय नहीं,
अदृश्य और आलौकिक सा,
रिश्ता है जो सामने होकर भी,
हर घड़ी महसूस होता है,
हां तुम कोई और नहीं!!
तुम वही हो जिसने मुझे कभी,
भटकने नहीं दिया,
मेरे जीवन की पतवार को,
खुद हाथ में थाम लिया,
हां तुम वही हो परमशक्ति,
मेरी जीवन के खिवैया,
डोर सांसों की पतवार,
तुम्हारे हाथों की,
पार लगा दो जीवन नैया !
