साथ हो तुम...!
साथ हो तुम...!
कहने को तो भुला चुका हूँ तुम्हें पर,
सच कहूं तो तुम आज भी साथ हो मेरे,
उन हलकी सी बरसातों में हो तुम,
राह चलते किसी मुसाफिर के बातों में हो तुम।
मेरी बिस्तर की सिलवटों में हो तुम,
अधूरी उन तन्हा रातों के करवटों में हो तुम,
मुकम्मल किसी रोज ख्वाबों में हो तुम,
लोग पूछते है सवाल तन्हाई पे मेरे, जवाबों में हो तुम ,
मेरे लिखी हर अधूरी कहानी के किस्सों में हो तुम,
मेरे नसीब के बदकिस्मत हिस्सों में हो तुम,
मानो तो तन्हा जिंदगी के इकलौते हमसफर हो तुम,
फर्क बस इतना मैं हकीकत, तो खयालों में हो तुम।