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Babu Dhakar

Abstract Others

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Babu Dhakar

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सांसें

सांसें

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सांसें है थमी थमी और तुम मास्क लगाने की बात करते हो

राहों में बिछी हुई है लाशें और तुम चस्का लगाने की बात करते हो

ये सांसें और ये लाशें आज लावारिस हो गई है

पर इस समय तुम अप‌नी बड़ी बड़ी बातें करते हो।

इनके हालात ऐसे हैं कि ये कुछ कर नहीं सकती

सांसें अगर ना रुकती तो लाशें नजर नहीं आती

इनकी राहों में अब तक क्यों कोई राहगीर नहीं आये

सब बंद घरों में हैं क्योंकि सांस स्वयं की लाश ना बन जाये।

सांस है थकी थकी और तुम काम करने की बात करते हो

आज अपना भला करने को किसी की लाश ही क्या मिली है

ये तन और ये सांसें लाश में तबदील हो जानी ही है एक दिन

पर पहले किसी को यह जीवन दे जायें ऐसा कोई काम कर।

सांसें सदमे के जल में नहाई लगती है

लाशें इसी जल पर तैरती दिखती है

सांसों के मन का क्षोभ हरिद्वार जान गया

लाशों की लाज कोई अस्पताल नहीं रख पा रहा।

सांसें है मद्धम मद्धम रोशनी सी

सांसें है तारों सी टिमटिमाती ज्योति सी

जरूरत है सूर्य के तेज सी किरण रूपी सांसों की

जो चांद कि किरणों सी शीतलता प्रदान कर जाये।।



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