रूहानी
रूहानी


वो अजनबी दिल के बेहद करीब था,
ज़िंदगी के अजीब से मोड़ थे और मैं भटका मुसाफिर था।
उस जैसा कोई मिला ही नहीं,
दिन काफी बीत गए पर उसके घर का पता मैं भूला ही नहीं,
ना जाने कब मुलाकात होगी,
ना जाने वो पहली जैसी शामें फ़िर कब होगी,
वो अजनबी दिल के बेहद करीब था,
ज़िंदगी के अजीब से मोड़ थे और मैं भटका मुसाफिर था।
दिल में गिले शिकवे तो तमाम है,
पर तुमसे बाटने के लिए खुशियां भी तमाम है,
धूप के सफ़र में दिल छाव तलाश रहा है,
बावरा ये दिल ना जाने यादों की खाक में क्या छान रहा है,
वो अजनबी दिल के बेहद करीब था,
ज़िंदगी के अजीब से मोड़ थे और मैं भटका मुसाफिर था।
वक़्त भी आकर गुज़र गया,
तू भी वक़्त सा था आखिर बदल ही गया,
हज़ारों आए ज़िन्दगी में सबक हज़ार दिए और चले गए,
मेरी रगों से भरी ज़िन्दगी को बेरंग कर गए,
वो अजनबी दिल क
े बेहद करीब था,
ज़िंदगी के अजीब से मोड़ थे और मैं भटका मुसाफिर था।
कमी कुछ मुझ में ही थी,
शायद कोई भूल मुझसे ही हुई थी,
इंसान को समझने में ज़रा सी देर हो गई,
कुछ नहीं बदल सकता अब काफी देर हो गई,
वो अजनबी दिल के बेहद करीब था,
ज़िंदगी के अजीब से मोड़ थे और मैं भटका मुसाफिर था।
एक जुनून सा मुझ पर सवार था,
इन दूरियों के लिए बस वक़्त ही ज़िम्मेदार था,
खत लिखने बैठे तुझे पर काग़ज़ गीला हो गया,
आसू थमे नहीं सीहायी बिखरी और काग़ज़ मैला हो गया,
वो अजनबी दिल के बेहद करीब था,
ज़िंदगी के अजीब से मोड़ थे और मैं भटका मुसाफिर था।
हमदर्द हमसफ़र अनजानी राहों में यूं ही मिला करते है,
उम्र भर के साथी राहों में कहा बिछड़ा करते है,
इश्क़ पिंजरे में कैद था और वहीं मर गया,
खुदा सा पाक था रिश्ता और बे नाम ही रह गया।