होस्टल का दूसरा दिन
होस्टल का दूसरा दिन
जाना था जो अगले दिन
होने लगी फिर घर में तैयारियाँ
वहा पहुँचने से पहले फिर
मन मे उठने लगे सवालों की झरिया
होस्टल क्या है ये मैं उस दिन देखा
हाल वहा का फिर मैं जाना
कदम पड़े जब होस्टल के गेट पर
खुलने लगे फिर नियमों का पिटरा
आंखें झुका विश है करना
सलवार पहन दो चोटी में फिर रहना
जबाब नहीं कुछ है देना
जो तुम हो फिर कितने भी सही
फिर कई नियम और थमे हाथो में
जो रत रत कर सुबह हुए
रात एक बीती थी उस दिन
लेकिन मन में सौ वर्ष लगे थे
ऐसा उस दिन लगा था मन को
नहींं हो पायेगा यहाँ रहना मेरा।।
