इस जिस्म में जन्नत
इस जिस्म में जन्नत
जान तुम भी गए जान हम भी गए
ये जान भी जिस्म में जन्नत से है
इन मुयननो में कहा हम फंस गए
जानना क्या था क्या हम कर रहे।
दूर है जो जमानो से अब वो जहाँ
ओझल जो हुुये हम वही जा फंसे
करके हम जो शक यूं कर बैठे
दूरियां भी वही अब बढ़ती गई।
चलते रहे हम गज नापते रहे
दूरिया कभी भी यू कमती नही है
सागर की लहरें बढ़ती गई यूं
हम भी यहाँ यूं फंसते गए।