पतझड़ में भी
पतझड़ में भी
पतझड़ में भी
मैं तो पेड़ों से पत्ते
झड़ने न दूं
प्यार दूं मैं
इन्हें इतना कि
पतझड़ में भी यह
फूलों से लदी
बहारों से
खिलते रहें
मुस्कुराते रहें
महकते रहें।
जब कभी
वह समय का मोड़
वह दुखद पल भी आये कि
बहारें इनसे मुंह फेर लें और
एक पत्ता भी इन पर न लहराये
मेरे बस में हो तो
मैं मर जाऊं पर
इनको कभी सूख सूखकर
ऐसे तड़प तड़पकर
कभी न
मरने दूं।
