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Ruchika Rai

Abstract

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Ruchika Rai

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कोरा पन्ना

कोरा पन्ना

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कोरे पन्ने पर लिखूँ मैं दिल के सारे जज़्बात,

जीवन पथ पर कितने सारे मिले मुझे आघात,

कैसे गिरकर खड़ी हुई,कैसे मैंने चलना सीखा,

मेरे कर्मों से नियति ने दिया क्या मुझे सौगात।


वेदना की तीव्रता लिखूँ या लिखूँ मरहम को,

प्रेम के एहसास लिखूँ या लिखूँ हर गम को,

चोटों को सह सहकर सीखा मैंने क्या क्या,

हँसी की फुलझड़ी लिखूँ या आँखें नम को।


हौसलों की उड़ान लिखूँ या लिखूँ थकन को,

संघर्षों की क्षमता लिखूँ या लिखूँ बोझिल मन को,

कोरे पन्नों पर लिखूँ मैं जीवन के सारे संग्राम,

 पाने का शुकराना लिखूँ या लिखूँ कमियों का एहसास।


कोरे पन्नों पर लिखूँ मन में चलते विचारों के झंझावात।

जीवन में मिले हुए दुख सुख भरे हुए सारे ही सौगात।


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