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S Ram Verma

Abstract

5.0  

S Ram Verma

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रूह को रोते देखा था !

रूह को रोते देखा था !

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रात बहुत देर तक मैंने 

अपनी रूह को रोते हुए 

देखा था 

तब एक कविता उमड़ 

पड़ी थी मेरे मन के भावों 

में पर चेहरा उसका भी 

कुछ कुछ तुम जैसा था

पर आवाज़ उसकी हूबहू 

मुझ जैसी थी 

रात बहुत देर तक मैंने 

अपनी रूह को रोते हुए 

देखा था 

तूने ख्वाबों में खुद से  

जब लिपटकर उसको 

अपनी बाँहों में सुलाया 

था तब जा कर उसकी 

वो सुबकाई बंद 

हुई थी 

रात बहुत देर तक मैंने 

अपनी रूह को रोते हुए 

देखा था !


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