रूढ़िवादी बेड़ियां
रूढ़िवादी बेड़ियां
धन्य है वह समाज,
धन्य हैं वह बेटियां|
जिन्होंने तोड़ दीं,
सारी रूढ़िवादी बेड़ियां।
ज्ञान का सागर समेटे,
चल पड़ी हैं बेटियां|
लहर बन कर अब उठी हैं,
ना रुकेंगीं बेटियां।
युग रहे उज्जवल सदा,
अब वक्त वो भी आ गया|
रोशनी बन कर उठी वह,
और उजाला छा गया।
देख ले अंबर भी तू अब,
सैनिक परी की रैलियां|
वह लड़ाकू घोर घातक,
विमान उड़ाती बेटियां।
इस जमीन की सरहदों पर,
पहरा लगातीं बेटियां|
देश की प्रगति करातीं,
जांबाज अपनी बेटियां।
दूरकर पाखंड सारे,
चल पड़ी ये बेटियां |
इंसान है कि जो भूल थी,
वह सुधारती हैं बेटियां।