रुखे पन्ने सा इश्क़
रुखे पन्ने सा इश्क़
रुखे पन्ने सा इश्क़ तेरा
मेरे दिल को तड़पाता है
जब चले कहीं बलखाती पवन
मेरे दिल को धड़काता है
जानूं मैं भी ये राज़ की बात
तू भी मुझ पर ही मरता है
जुबां से कभी कुछ कहता नहीं
रुखे पन्ने सा फड़कता है
अब तोड़ भी दो चुप्पी अपनी
माह-ए-इश्क़ में इज़हार करो
न ख़ुद तड़पो इस आग में तुम
न मेरे दिल को बेकरार करो