रंग रस है फागुन
रंग रस है फागुन
कंधे पे सवार बसंत की
होकर आता फागुन
उत्सव बसंत है
रंग रस है फागुन !
रंग और रस प्रकृति की
रचना आकृति हरेक
पुलकित अंतर्मन में
फागुन संग आती
तितिलिया रंग बिरंगे परिंदे
पीली चादर ओढ़ सरसो की फूल
पलाश आम की मंजरी
रंगो का त्यौहार लता सबकुछ
कंधे पे सवार बसंत की
होकर आता फागुन
उत्सव बसंत है
रंग रस है फागुन!!
यह जीवन में आता
उमंग तथा उत्साह का
उल्लास भरा माहौल
उन्मुक्त वातावरण बना
हो जाता विदा भी
कंधे पे सवार बसंत की
होकर आता फागुन
उत्सव बसंत है
रंग रस है फागुन!!
भिगोता सावन भादो की तरह
पुस की तरह ठुठुरता
सुबकता माघ की तरह
नही तीखा रूखा ज्येष्ठ आषाढ़ की तरह
चैत वैशाख की तरह
ना पिघला ना ठहरा
बस उन्मुक्त सा उड़ता चला
कंधे पे सवार बसंत की
होकर आता फागुन
उत्सव बसंत है
रंग रस है फागुन!!
प्रकृति की झोली
सतरंगी कया पे
चमकीले लाल चेहरे
गुलाबी पीतांबरी सांसों की धुन
हरितिमा से सरोबर अंग प्रत्यंग
खेत गांव आंगन की माटी
होली की अबीरी और रंगीन हो जाती
कंधे पे सवार बसंत की
होकर आता फागुन
उत्सव बसंत है
रंग रस है फागुन!!
रंग के बादल घिर जाते
दमक उठता गुलमोहर सा जीवन
पिचकारियों में फिर
सिमट जाती सप्तरंगी आभा
रंग रस जिजीविषा जीवन सेतु
कंधे पे सवार बसंत की
होकर आता फागुन
उत्सव बसंत है
रंग रस है फागुन!!
अपरिभाषित सुवास आप्लावित वातावरण
आकाश छूती होलिका की लपटे
पकी बुटझंगरी लपटों में
मन खोजता अमरता की बीज
कंधे पे सवार बसंत की
होकर आता फागुन
उत्सव बसंत है
रंग रस है फागुन!!
खोज अमरता की बीज जारी
खुद हो रंगीन दूसरो को रंगने की धुन
चाहु और गूंजे स्वर
"मन न रंगाए रंगाए जोगी कपड़ा"
"बुरा ना मानो होली है"
"बोल जोगीरा सरारा"
कंधे पे सवार बसंत की
होकर आता फागुन
उत्सव बसंत है
रंग रस है फागुन!!
फागुन ऋतुरंग
अकेलापन हरता
दुख को भरता
आशु रोकता
आहत जोड़ गीत नित्य के धुन
जीवन की अभिन्न हिस्सा
कंधे पे सवार बसंत की
होकर आता फागुन
उत्सव बसंत है
रंग रस है फागुन!!
गूंजते वैदिक मंत्रों में
रामायण पुराणों के शब्द
राग कालिदास,कल्हण, सुर तुलसीदास
संतो नवजागरण महापुरषों की
बनी जीवनधारा
बनके धारा नित्य,चित्र,गीत,काव्य,भक्ति प्रेम
कर्मक्षेत्र में भावभूमि का आधार
कंधे पे सवार बसंत की
होकर आता फागुन
उत्सव बसंत है
रंग रस है फागुन!!
ऋतुराग ऋतु सौंदर्य
मन पे बिखरे
प्रतिध्वनिया अंतर्मन सुवासित
अस्मिता को चैतन्य बना
रंग राग सांसों में बहती
कंधे पे सवार बसंत की
होकर आता फागुन
उत्सव बसंत है
रंग रस है फागुन !

