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संदीप सिंधवाल

Abstract

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संदीप सिंधवाल

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रंग बेरंग

रंग बेरंग

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रंग नहीं है किसी के पास 

गजब बेरंग ये कहानी है 

किसको रंगे वीरानी में

बस रंगहीन सदा पानी है।


रंग नहीं सकते हर एक को

किसी पर क्या अपना जोर है

मेरे रंग में जिसे भी रंगना हो

आये, कुदरती रंग चारों ओर है।


नकली रंगों की क्या कहानी 

कुदरत ने रंगीन जहां बनाया है

हर्ष उल्लास आजीवन रंगीन हो

मानस ने वो रंग कहां बनाया है।


कुदरत सत्य का ज्ञान कराती

कि हर रंग का विशेष अस्तित्व है

बुरे भले की समझ कराती है

नज़रों से रंग पहचानती ओचित्य है।


रंग की समझ जो भी रखते हैं

भ्रम जाल में वो नहीं फंसते है

हर रंग से रंगते ओरों का जीवन

फूलों सा वो आंखों को भाते हैं।


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