रंग बदलती है ये दुनिया....
रंग बदलती है ये दुनिया....
जाने क्यों मगर पल-पल रंग बदलती है ये दुनिया।
मुसाफ़िर को मंज़िल मिलने पर भी ठगती है ये दुनिया।
किसी के घाव पर तो मरहम नहीं छिड़कती है ये दुनिया।
बस मौका मिले तो जीभर घाव कुरेदती है ये दुनिया।
तुम खुद को तो समझा कर आगे बढ़ लोगे तन्हां मगर,
जाने फिर क्यों तुम्हारा हमदर्द बन संग चलती है ये दुनिया।
ज़िन्दगी में हार-जीत का अफसाना चलता रहता है,
कभी आपस में लड़वा अपना स्वार्थ भी सिद्ध करती है ये दुनिया।
सब एक से नहीं होते जहां में सब जानते हैं ये बात,
वो भी हां मैं हां मिला दें जत्न यही करती रहती है ये दुनिया।
खुद भी जियो खुशहाली में औरों को भी मुस्कराने दो जीभर,
अपने हिसाब से किसी का मुकद्दर क्यों लिखना चाहती है ये दुनिया।