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Sheikh Shahzad Usmani

Action Classics Inspirational

4  

Sheikh Shahzad Usmani

Action Classics Inspirational

रंग और दंभ

रंग और दंभ

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मैं समय हूंँ रे,

नयी सदी के सफ़र में हूंँ !

तू मेरे संग नयी सदी का भारत है रे !

भारत या भारत का आम नागरिक ! 

बता ज़रा, क्या पूरी तरह आत्मनिर्भर है रे ?


आत्मनिर्भर ! हो, नहीं हो, हाँ हो तो!

बदला तो जा रहा है न तू ; हो तो रहा है  न आत्मनिर्भर !

लेकिन पूरी तरह आत्मनिर्भर होता, तो उठ जाता रे ! 

पैरों पर खड़ा हो जाता; पंख होते, तो उड़ जाता रे !

तेरे संग हुनरों, कौशलों के रंग हैं

तेरे सबरंग मेरे ही अंग हैं रे !


 रंगीले भारत रंग दूँ तुझे आ रंग ले रे !

मैं समय हूंँ रे,

नयी सदी के सफ़र में हूंँ !

तू मेरे संग नयी सदी का भारत है रे !

बेशक़, अब ख़ुशरंग कम

तुझमें किंचित बदरंग ज़्यादा हैं रे !


आपस में या तेरी ख़ुद की ख़ुद से जंग भी तो है रे ! 

ये तेरा ऐसा समय है रे !

ओह, मैं भी तो दंग हूंँ

नये भारत में, जाने किस में

किस बात का दंभ है रे !


मैं समय हूंँ रे,

नयी सदी के सफ़र में हूंँ !

तू मेरे संग नयी सदी का भारत है रे !

भारत या भारत का आम नागरिक ! 

बता ज़रा, क्या पूरी तरह आत्मनिर्भर है रे ?


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