रक्षण हेतु : विवेक और अंतर्मन
रक्षण हेतु : विवेक और अंतर्मन
निजी सहायक सेवक सारे,
करते हैं हमारी वाह्य सुरक्षा।
निज विवेक अंतर्मन अपना,
आत्मशक्ति दे करते पूरी रक्षा।
अनुपम भेंट प्रभु की यह तन,
रक्षण इसका दायित्व हमारा।
अंतर्मन से मिलती हमें प्रेरणा,
और संस्कारों से मिलता सहारा।
प्रकृति संरक्षण हम करते रहें तो,
प्रकृति करेगी हम सबकी सुरक्षा।
निज विवेक अंतर्मन अपना,
आत्मशक्ति दे करते पूरी रक्षा।
राजा अपनी मर्ज़ी के हम सब हैं,
निर्णयकारी होती हैं दो इच्छाएं।
एक गमन धर्म मार्ग की देती प्रेरणा ,
दूजी को नियंत्रित करती हैं तृष्णाएं।
प्रकृति संरक्षण ही तो प्रमुख धर्म है,
अपने सब संस्कारों की है यह शिक्षा।
निज विवेक अंतर्मन अपना,
आत्मशक्ति दे करते पूरी रक्षा।
सतत् निज विवेक हम जागृत रखें,
परहित को हम अपना लक्ष्य बनाएं।
शक्ति पूर्ण तन-मन से ही होवे साधना,
निज तन-मन को हम बलिष्ठ बनाएं ।
मन के आगे हम मत करें समर्पण ,
निर्णय में अंत:प्रज्ञा की ही मानें शिक्षा।
निज विवेक अंतर्मन अपना,
आत्मशक्ति दे करते पूरी रक्षा।
