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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Abstract Inspirational

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Abstract Inspirational

रिश्तों का गुल्लक

रिश्तों का गुल्लक

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किसी का अपना होना

अब सपना हो गया

रिश्तों मे विलुप्त होता अपनापन

रिश्तों मे विस्तरित होती खुरदरापन

मजबूर करता करो स्वीकार

जरूरत है रिश्तों के म्यूजियम की

भविष्य को इतिहास बताने के लिए।


पहले रिश्तों पर समय खर्च होता था

समय पर वही रिश्ता काम आता था

रहती अपनापन और नजदीकियाँ भरपूर

कहना सुनना हो जाता आँखों ही आँखों में

अक्सर बातें बन जाती रूठने मनाने में

कोई आँखों से उतर जाता

कोई आँखों मे उतर जाता


समय का आभाव होने लगा

शब्दों का प्रयोग  होने लगा 

रिश्तों को संभालने में

भावना के सम्प्रेषण में

लफ्जों ने साथ दिया

खत ने भी पैगाम दिया

ईमेल ने भी भूमिका निभाया


शब्द भी अब महंगा लगने लगा

इमोजी से ही काम चलने लगा 

इससे रिश्तों में जीवंतता मरी है

नई रीत सी चल पड़ी है

अपना सपना और सपना अपना

बचा लो रिश्तों का म्यूजियम बनने से

बना लो एक छोटा कोना अपने घरौंदे में

रखने के लिए 

थोड़ा सा प्यार थोड़ा सा अपनापन


थोड़ी भाभी, थोड़ी काकी

थोड़ी नानी, थोड़ी दादी

जितनी साली, उतनी दीदी

नाना का प्यार, दादा का अनुभव

रिश्तों का गुल्लक 

बचना भी जरूरी, भरना भी जरूरी

डालकर जज्बात और चाहतें आधी अधूरी।


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