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Prem Bajaj

Drama

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Prem Bajaj

Drama

रिश्ते

रिश्ते

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रिश्तों की पोटली

ले के आई थी मैं रिश्तों की पोटली को

ढेर सारे रिश्ते लाई हूँ मैं अपनी पोटली में।


बेटी बनी, बहन बनी,सखी बनी मैं बहू बनी

बहु के फर्ज़ निभाती गई,

भाभी-ननद और चाची -मामी भी बनी,

बीवी के साथ-साथ प्रेमिका का भी फर्ज निभाया,

सारे फर्ज़ निभाती गई,

बस जि़न्दगी यूँ ही चलाती गई,

इक भी रिश्ता जी ना पाई।


रिश्ते सभी निभाया करते हैं,

बस इक ही रिश्ता जीते हैं

हम वो है इक प्यारा सा रिश्ता,

कहते उसको माँ का रिश्ता,

निभाते नहीं हम जीते हैं उसको,

ऐसा होता माँ का रिश्ता।


लेकिन इन सब रिश्तो से जुदा होता है इक न्यारा रिश्ता

कोहीनूर से भी मँहगा लगता मुझको मेरे दोस्त का प्यारा रिश्ता

वो अनदेखा ,वो अनजाना

(आजकल Fb frnds बनते हैं

हम लोग तो अनदेखे, अनजाने ही होते हैं )

वो अनदेखा, वो अनजाना,इक दोस्त आया है।


वो दोस्त मेरी जि़न्दगी में खुशियाँ लाया है

वो दोस्त बहारे लुटाने आया है

वो मेरा यार, दिलदार, मेरी जि़न्दगी की बहार

बन कर आया है मेरे दिलो-जान,

ये दो जहान कुर्बान उस पे,

वो मेरा जहाँ बन के आया है।


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