राष्ट्र प्रेम की नित ज्योत
राष्ट्र प्रेम की नित ज्योत
जिए कैसे अपने पूर्वज सहकर
सौ साल दासता की हालत ?
परतंत्र भाव ही कर नित आहत,
देता है मन को पल-पल आघात।
इस मिट्टी के हर कण में,
पसरा है गंध बलिदान का।
शहीद हर सपूत के मन में
पुंज भरा था स्वाभिमान का।
मातृभूमि पर मर- मिटनेवाले
हे राष्ट्र भक्त वीर सपूतों,
नमन है सदा, बलिदान आपके
देन प्रदत्त नित स्वतंत्र को।
निर्भीकता से शीश उठाकर,
करें सब माँ भारती का गुणगान।
निर्मल भाव से नमन- कर,
तिरंगा का करें नित सम्मान ।
राष्ट्र प्रेम की दिव्य ज्योत
रहे सदा अजस्र सद्योत।
हो जन गण मन सर्वदा
स्वतंत्र भाव से ओतप्रोत।
जन गण मन है आज अति प्रसन्न
है मंद-स्मित वदना माँ भारती।
लहरा है आज त्रिवर्ण वैजयंती,
स्वतंत्रता की है आज अमृत वर्धंति।