राष्ट्र निर्माता शिक्षक
राष्ट्र निर्माता शिक्षक


शिक्षक शिक्षा का उद्धार है,
उद्दंड बचपन का स्वयं सिद्ध सुधार है ।
शिक्षक दीप है जो स्वयं जलता,
पर आभामय सारा संसार है ।।
गुरु गुरु थे अब शिक्षक हो गए,
शिक्षा पुनीत कर्म यहॉं के अधीक्षक हो गए ।
आलोचना विहीन सत्कर्म था कभी,
समाज के सरोकार अब समीक्षक हो गए ।।
गुरु अटल है जो आंधियों में स्वयं पला है,
विपरीत परिस्थितियों में हर बार जला है ।
शिक्षा उपल का आधार स्तंभ,
निरंतर पर ताप से तपा कभी गला है ।।
हे गुरु जगमगाती डगर को तुमने संभाला है,
विचलित मन को दूर गगन में सहर्ष उछाला है ।
दिनकर करे प्रकाशित जग को,
पर तुम्हारी द्युति भी नित्य निरुपम निराला है ।।
गुरु है तो भावी भविष्य पथ प्रशस्त है,
द्रोण,चाणक्य,परशुराम सा स्वयं सिद्धहस्त है ।
गुरु की गुरुता कही न जाए,
माया-मोह से परे मोक्ष प्राप्य विश्वस्त है ।।
गुरु से गौरवान्वित गुरू शिक्षा उद्देश्य है,
समदर्शिता समरूपता समाहार गुरु समावेश्य है ।
प्रखर पुंज प्रकाश से प्रसन्नचित,
समाज का धरोहर गुरु अकलेश्य है ।।
गुरु हर्ष है भारत का उत्कर्ष है,
गुरु है तो हर्षित माॅं भारती सहर्ष है ।
गुरु मान है स्वयं सिद्ध सम्मान है,
गुरु से ही निर्देशित बचपन का संघर्ष है।।
इसलिए जीवन के उपदेश गुरु तुम्हें नमन है,
गुरु है पारलौकिक गुरु से इन्द्रिय दमन है ।
गुरु है पारस मणि सा अनमोल,
शिक्षा संस्कृति सौहार्द का शुभागमन है ।।
जगत के सारे गुरु तुम्हें नमन है..
तुम्हें बारंबार शत-शत नमन है..