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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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रामयण ४३ ;रावण का अहंकार

रामयण ४३ ;रावण का अहंकार

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मंदोदरी सुना, राम आ गए

बांधा समुन्द्र खेल खेल में

हाथ जोड़ बोली रावण से

बहुत अंतर है, राम में ,तुम में।


करो वैर, जो तुमसे दुर्बल हो

बल बुद्धि से उसे जीत सको

तुम जुगनू तो, राम सूर्य हैं

विष्णु के अवतार हैं वो तो।


राक्षसों का संहार करें वो

मधु कैटव को उन्होंने मारा

वराह और नरसिंह रूप में

हिरण्यक्ष, हिरण्यक्षपु को तारा।


वामन रूप में बलि को बांधा

परशुराम, सहस्रबाहु मारा

जानकी जी को वपिस कर दो

पाप वो कर दें माफ तुम्हारा।


चौथेपन में जब आ जाओ

कहें ज्ञानी, तुम वन में जाओ

राज पाठ बेटे को देकर

प्रभु भजन में तुम सुख पाओ।


रघुनाथ का भजन कीजिये 

सुहाग अचल हो जाये मेरा

रावण ये कहें मंदोदरी से

भय ये सब व्यर्थ है तेरा।


मेरे समान कोई योद्धा देखा

देवता, दानव बस में मेरे

ये भय क्यों उत्पन्न हुआ तुम्हे 

कितने योद्धा मुझे रहते घेरे।


मंदोदरी की बात सुने ना

फिर भी वो उसको समझाए

मंत्रियों से पूछे रावण

बोलो अब क्या किया जाये।


मंत्री कहें मनुष्य और बन्दर

तो आहार में हम सब खाएं

पुत्र प्रहस्त एक रावण का

उसको तब नीति समझाए।


मंत्री ये मूर्ख हैं सारे

बन्दर एक लंका थी जलाई

सुनने में इनकी मति अच्छी

पर इस सब में न है भलाई।


जगत में ऐसे मनुष्य बहुत हैं

मुंह पर मीठी बात हैं कहते

बातें जो कठोर हितकारी कहें

ऐसे मनुष्य थोड़े ही रहते।


मेरी मानो तो तुम ऐसा करो

सीता लोटा दो, करलो राम से प्रीती

अगर फिर भी वो न लौटें तो

डटकर युद्ध करो, ये कहती नीति।


रावण क्रोध में कहे, अरे मूर्ख 

ऐसी बुद्धि सिखलाई किसने

प्रहस्त चला घर, जाते जाते

कठोर वचन तब कहे थे उसने।


मृत्युवश हुए रोगी को

जैसे कोई दवा नहीं लगती

वैसे ही हित की सलाह कोई

आप पर अब असर नहीं करती।


संध्या हो गयी, रावण चला अब

महल में, जो चोटी पर बना था

अप्सराएं नृत्य थीं करतीं

नाच गाना वहां चल रहा था।


राम उतरे सुबेल पर्वत पर

रात हुई आराम करें वहीँ

देखें पूर्व में चन्द्रमा

आकाशवन में जैसे सिंह कोई।


पूछें प्रभु साथी गनों से

कालापन ये चाँद में है जो

क्यों आया ये इसके ऊपर

अपनी बुद्धि से सब ये कहो।


सुग्रीव कहें पृथ्वी की छाया

कोई कहे राहु ने मारा

कुछ कहें जब रति मुख बनाएं

ब्रह्मा ले गए भाग ये सारा।


राम कहें ये तो विष है

चन्द्रमा का प्यारा भाई

दिया स्थान ह्रदय में उसको

विषयुक्त किरणें फैलाईं।


वियोगी नर नारियों को जलाएं

इन किरणों ने उनको मारा

हनुमान कहें, ये प्रिय दास आपका

श्याम वर्ण दिखे वहां तुम्हारा। 


 


 

 










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