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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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रामायण ६१ ;काकभुशुण्डि गरुड़ संवाद

रामायण ६१ ;काकभुशुण्डि गरुड़ संवाद

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गरुड़ का किया सत्कार उन्होंने 

पूछा किस कारण हैं आये 

गरुड़ बोले जिस कारण आया 

संदेह वो आते ही मिट जाये। 


आप के आश्रम में आते ही 

सारा मोह मिट गया मेरा 

पवित्र कथा अब सुनूं राम की 

ताकि जनम सुफल हो मेरा। 


शुरू से अंत तक कथा सुनाई 

गरुड़ कहें, सब राम की माया 

संदेह था मेरे लिए ये हितकर 

तभी तो राम कथा सुन पाया। 


काक कहें, हे पक्षीराज जी 

प्रभु ने आप से भेंट कराइ 

आप को यहाँ भेज कृपा की 

राम ने है मुझे दी बड़ाई। 


जगत में ऐसा कोई नहीं है 

मोह में जो कभी न बंधा हो 

काम ने ना हो जिसे नचाया 

क्रोध में कभी हुआ न अँधा हो। 


कोई ज्ञानी, चाहे हो तपस्वी

शूरवीर कोई कितना भी 

मान, मद और ममता ने 

नाश किया है यश उनका भी। 


पुत्र, धन और लोक प्रतिष्ठा 

ये तीनों इच्छा प्रबल हैं 

बुद्धि को मलीन कर देतीं 

माया बहुत अपार, सबल है। 


शिव, ब्रह्मा भी डरते इससे 

मनुष्य की तो बात ही क्या है 

माया है रघुवीर की दासी 

छूटे तभी, जब उनकी दया है। 


श्री राम का ये स्वाभाव है 

भक्तों का अभिमान छुडायें 

उनका दास अभिमान करे तो 

नित्य नयी माया रचाएं। 


  

 


 



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