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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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रामायण ४१ रावण-शुक संवाद

रामायण ४१ रावण-शुक संवाद

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जब चले विभीषण रावण के पास से

पीछे दूत थे भेजे उसके

कपट से वानर बन के आये

भूले सब राम वचन सुनके।


वानरों ने पहचान लिया उन्हें

सुग्रीव के पास वो ले आये

कहें वो, अंग भंग करो इनका

ताकि सबक इन्हे मिल जाये।


चारों तरफ घुमाया था उन्हें

मारने लग गए वानर उनको

दूत बोलें जो अंग है काटे

 राम सौगन्ध लगे है उनको।


सुनकर लक्ष्मण निकट बुलाया

दया आई, उन्हें छोड़ दिया 

चिठ्ठी एक हाथ में दे दी

रावण के लिए सन्देश दिया। 


कहा रावण से तुम ये कहना

सीता जी लेकर, मिलो राम से

नहीं तो बस फिर काल तुम्हारा

 बस आया समझो जल्दी से |


दूत पहुंचे रावण की सभा में

रावण पूछें शुक, क्या खबर है

विभीषण का समाचार सुनाओ

सबके मन में क्या मेरा डर है।


शुक कहे, विभीषण जब पहुंचे

राजतिलक कर दिया राम ने

असंख्य योद्धा उनकी सेना में

क्या कहूँ मैं, उनकी शान में।


बाणों से समुन्द्र सोख लें 

नीति कारण उससे राह मांगें

सुनकर रावण बहुत हंसा, कहे

वो कुछ भी नहीं मेरे आगे।


शुक ने फिर पत्रिका निकाली

रावण के लिए जो दी थी लखन ने

रावण मंत्रिओं को बुलाया

सामने उनके लगा बांचने।


लिखा चिठ्ठी में, अरे ओ मूर्ख

बातों से तू कुल का नाश करे

अगर राम से वैर करे तो

तेरा वो अवश्य विनाश करें।


भयभीत हुआ पर मुस्का के बोला

डींगे हांके है ये लक्ष्मण

शुक बोले हे नाथ, जो लिखा

एक एक ये है सत्य वचन।


शुक बोले कि वैर छोड़ दो

ह्रदय से कोमल हैं रघुनाथ

सीता को लौटा दो तुम

रावण ने उसको मारी लात।


चला गया वो राम के पास

चरणों में उनके मन रमा था

असल में वो एक ज्ञानी मुनि था

शाप कारण राक्षस बना था।



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