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Ajay Singla

Abstract

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Ajay Singla

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रामायण-३ शिव-पार्वती मिलन

रामायण-३ शिव-पार्वती मिलन

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हिमाचल के घर जन्मीं सती जी  

रूप धरा था पार्वती का

नारद को जब पता चला तो

मिलने को मन हुआ मुनि का।


घर पहुंचे, हिमाचल बोले

उमा, नारद के पैर छू आओ

नारद जी से विनती की के

बेटी के गुण दोष बताओ।


नारद बोले, गुणों की खान है 

तुम दोनों के लिए मंगल होगी

पर ,पति अमंगल वेश भूषा में

जटाधारी, होगा एक योगी।


हिमाचल और मैना को दुःख हुआ

पर पार्वती हर्षित हुई जाएँ

माता -पिता ने मुनि से पूछा

आप ही कोई उपाय बताएं।


नारद बोले ,सब विकृतयां

शंकर जी में हैं ये सारी

उनके दोष भी लगते गुण हैं

पर वो मिलते , करके तप भारी।


 व्याह न हो अयोग्य वर से

चाहे बेटी रहे कुंवारी

 मैना ने कहा तो हिमाचल बोले

शिवजी निष्कलंक त्रिपुरारी।


समझाया तब माता पिता को

तप करने गईं पार्वती जी

उधर पृथ्वी पर हैं विचरें

माता सती के विरह में शिवजी।


रघुनाथ का नाम थे जपते

रामचंद्र तब प्रकट हुए थे

जन्म लिया सती हिमाचल के घर

विवाह कीजिये पार्वती से।


उसी समय में सप्तऋषि भी

आए , प्रभु की महिमा गाएँ

लेने परीक्षा पार्वती की

शिव ने कहा आप अब जाएं।


पार्वती जहाँ तप थी कर रहीं

सप्तऋषि जी पहुंचे वहां पर

बोले क्या किसी का घर बसता

नारद जी पहुंचे हैं जहाँ पर।


गुणहीन शिवजी को छोडो

हमने सोचा है एक अच्छा वर

वैकुण्ठपुरी में रहने वाले

जगत्पति, विष्णु चक्रधर।


पार्वती ने बोला कि मैं  

वरूँगी तो शिवशंकर जी को

प्रणाम किया फिर पार्वती को

ऋषि गए हिमाचल के घर को।


कहा, लगन अब पार्वती का

होगा, शुभ समय है आया

कैलाश पर पहुंचे फिर सारे

शिवजी को वृतान्त सुनाया।


उसी समय तारक के नाम का

एक असुर हुआ था धरती पर

लोक लोकपालों को जीता

देवता पहुंचे ब्रह्मा के दर।


ब्रह्मा बोले मृत्यु हो उसकी

जब शिव वीर्य से पुत्र उत्पन्न हो

लिया जन्म है पार्वती ने

पर हो वही जो शिव का मन हो।


वो तो वैराग्य में विचर रहे हैं

गृहस्थी का ख्याल न आए

कामदेव को भेजो, उनका

पार्वती में मन रम जाए।


देवताओं ने कामदेव को

सारी विपत्ति थी सुनाई

पहुंचे वो जहाँ शिव समाधी में

ऋतुराज बसंत थी आई।


डिगे न शिव अपनी समाधी से

सब प्रयास जब विफल हुए तब

पुष्प धनुष पर बाण चढ़ाए

छोड़ दिए थे शिवजी पर सब।


शिवशंकर की समाधी तोड़ी

मन में उन के गुस्सा भर दिया

खोल दिया वो तीसरा नेत्र

कामदेव को भस्म कर दिया।


रति जी पत्नी कामदेव कीं

रोती हुई गयीं शिव के पास

बिनती की कैसे पति पाऊं

बोली मुझको आप से आस।


शिवजी बोले द्वापर में अब 

तेरा सपना साकार होगा 

प्रद्युम्न होगा पुत्र कृष्ण का 

कामदेव अवतार होगा। 


शिव के पास गए देवगन 

कहा आप अंगीकार करो 

पार्वती सती का ही रूप हैं  

हमारा भी उद्धार करो। 


ब्रह्मा जी ने प्रार्थना की जब 

शिवशंकर भी गए थे मान 

शादी को वो राजी हो गए 

करके रामचंद्र का ध्यान। 


हिमाचल के घर सप्तऋषि जी 

लग्न पत्रिका ऋषिओं को दी 

ऋषिओं ने दी ब्रह्मा जी को 

देवता नाचें भर भर जी। 


वाहन अपने लगे सजाने 

शिवगणों को भी सन्देश दिया 

लगाएं विभूति शरीर पर शिवगण 

शिव का भी श्रृंगार किया। 


सिर पर आधा चन्द्रमा और 

जटाओं में गंगा विराजे

माथे पर नेत्र तीसरा 

गले में उनके सर्प है साजे। 


त्रिशूल है उनके एक हाथ में 

दूजे में है डमरू बाजे 

बैल पर अपने चढ़कर चलते 

भूत प्रेत की विकट आवाजें। 


शिवगण भी अपने ही रूप में 

किसी का मुख नहीं, किसी के दो हैं 

किसी की कोई भी आँख नहीं है 

और किसी की पूरी सौ हैं। 


हिमाचल की नगरी सब पहुंचे 

प्रेत पिशाच थे आगे आगे 

बारातिओं को लेने जो आये 

उनको देख कर सरपट भागे 

मैना ने देखा, दूल्हा तो है 

जटाधारी और लगे भयंकर 

पार्वती के पास गईं और 

दुःख के मारे पीट लिया सर। 


बोलीं फिर वो पार्वती से 

घर उजाड़ा है नारद जी ने 

फूट फूट कर रोने लगी थीं 

कहतीं बेटी लग जा सीने। 


सप्तऋषि और नारद जी को 

हिमाचल तब लेकर आए घर

नारद कहते जगजननी ये 

युगों युगों से शिवजी हैं वर। 


मैना और हिमाचल ने दिया  

हाथ बेटी का शिव के हाथ  

चल दिए शिव कैलाश की तरफ 

पार्वती को ले के साथ। 


कैलाश पर दोनों विहार थे करते 

बीता समय बहुत सारा था 

कार्तिकेय का जन्म हुआ 

बड़े हुए तारक मारा था।


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