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Ajay Singla

Abstract Classics

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Ajay Singla

Abstract Classics

रामायण २८, मुनियों के दर्शन

रामायण २८, मुनियों के दर्शन

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काफ़ी समय चित्रकूट में रहे

सोचा मुझको सब जान गये

छोड़ा आश्रम, चल दिये आगे

अत्रि मुनि के आश्रम में गये।


छवि राम की बड़ी सुहावे

मुनि नेत्रों में जल भर आया

प्रणाम करे मुनि पत्नी को सीता

स्त्री धर्म बताएं अनुसूया।


माता पिता भाई करें हित 

पर वो सब एक सीमा तक

पति कि सेवा करे जो स्त्री

वो ही पाती है असीम सुख।


धैर्य, धर्म, मित्र और स्त्री की 

विपत्ति में होती है परीक्षा

धर्म पत्नी का पति की सेवा

दी सीता को ये शिक्षा।


चले मुनि से आज्ञा लेकर

सीता, राम, लक्ष्मण सारे

रास्ते में जो भी राक्षस मिले

दोनो ने वाणों से मारे।


शर्भङ्ग् मुनि के पास वो पहुंचे

मुनि उनकी राह देख रहे

शीतल मन हुआ प्रभु को देखकर

सुन्दर ये वाणी कहें


ब्रह्मलोक में जा रहा था

सुना राम आये हैं वन में 

रुक गया मैं मिलने को आप से 

अभिलाषा दर्शन की मेरे मन में। 


समर्पण करके जप तप प्रभु को 

बदले में भक्ति थी पाई 

योगाग्नि से शरीर जलाकर 

परमधाम, मुक्ति थी पाई। 


चले आगे प्रभु, साथ में उनके 

और मुनि भी चलने लगे 

ढेर देखा एक हड्डियों का 

पूछे राम कि क्या है ये। 


मुनि बताएं,यहाँ बहुत राक्षस

ऋषि, मुनियों को खाएं वो 

राम प्रण किया राक्षसों से 

करूँ रहित इस धरती को। 


मुनि अगस्तय के शिष्य सुदीक्षण 

प्रभु के ध्यान में मगन रहें 

प्रभु आगमन सुन नाचें गायें 

 प्रभु भी देखें पर कुछ न कहें। 


ह्रदय में प्रभु प्रकट हुए 

मुनि अचल हो वहीँ पर बैठ गए 

प्रभु प्रयत्न जगाने का करें 

ना ही जागें, ना कुछ वो कहें। 


चतुर्भुज रूप दिखाया ह्रदय में 

व्याकुल हुए दर्शन पाकर 

चरण पड़े, प्रभु गले लगाया 

मुनि प्रसन्न , ह्रदय से लगकर। 


सुतीक्षण को साथ ले प्रभु 

अगस्तय मुनि के पास चले 

राम ने मुनि से पूछा, हे प्रभु 

पवित्र कोई हमें जगह मिले। 


मुनि बोले एक पंचवटी है 

स्थान सूंदर, दण्डक वन में 

चले प्रभु फिर पंचवटी को 

रहें वहां, ये था मन में। 


निकट पहुंचे जब पंचवटी के 

जटायु से हुई भेंट वहां 

बनाई पर्णकुटी एक सुंदर 

तीनों रहने लगे वहां। 





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