राम
राम
हम पर्वतों पे चलते है जो संग है आकाश के,
संभल संभल के रखते अपने शब्द हम जबान पे,
सामना हो जाए जो छल कपट का रास्ते,
विलुप्त उसको करते राम लेके तेरा नाम रे,
राम पे यकीन है सुनता हमारी आवाज है,
तुम पत्थरो मे दिखते हो
और हमने मिलना खाक मे,
घास की, आकाश की,
तलब सी है तलाश की,
नकाब सा वो साहब का राम नाम अलापता,
पर झांकता ना जानके वो अंतर मन मे,
शंकर बन के संकट मोचन संग चलते राम के,
दाम का तु दान देके ढूँढ ले जमीर को,
और नाम लेके संग संग बोल मेरे,
हम पर्वतों पे चलते है जो संग है आकाश के,
संभल संभल के रखते अपने शब्द हम जबान पे,
सामना हो जाए जो छल कपट का रास्ते,
विलुप्त उसको करते राम लेके तेरा नाम रे।
