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SANDIP SINGH

Classics

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SANDIP SINGH

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राजा हरिश्चंद्र

राजा हरिश्चंद्र

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सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र को कौन नहीं जानता,

सत्य और धर्म कर दूसरा नाम राजा हरिश्चंद्र है।


सत्य की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व दान दिया,

ऋषि विश्वामित्र ने उनका परीक्षा लेना ठान लिया।


अयोध्या का राज_पाट सब देने के बाद भी,

राजा का दु:ख अभी कम नहीं हुआ था।


ऋषि विश्वामित्र को गुरू दक्षिणा देना है बांकी,

 पत्नी और पुत्र को एक ब्राह्मण से बेच दिया।


काशी नगरी में यह दर्दनाक खेल खिला,

अभी भी 500स्वर्ण मुद्राएं पूरी नहीं हुई है।


राजा स्वयं को भी बेच दिया है,

चांडाल के हाथों, मुद्राएं पूरी हुई।


ऋषि विश्वामित्र का दक्षिणा पूरा हुआ,

राजा श्मशान में रखवाली करने लगे।


परीक्षा का दर्दनाक खेल चल रहा है,

रखवाली और कर वसूलने का काम राजा कर रहें हैं।


वक्त तेरे रुप अनेक, तूं कठोड़ भी कम नहीं,

पुत्र रोहिताश्व का सर्प_दंश से मौत हो गया है।


रानी तारामती शव लेकर श्मशान आती है,

राजा बिना कर के शव जलाने से इन्कार करते हैं।


रानी के पास फूटी कौड़ी भी नहीं है,

कर में रानी पहनी साड़ी को फाड़ कर देना चाही।


वाह कुदरत के खेल निराले हैं,

तभी आकाश से आकाशवाणी हुई ठहरो।


पूरे समां में अद्भुत खुशबू फैल जाती है,

देवता गण वहां प्रकट हो जाते हैं।


यह देख राजा अति खुश होकर,

सारे प्रकट देवों को अभिवादन करते हैं।


साथ में ऋषि विश्वामित्र भी हैं,

देवगण अति प्रसन्न होकर राजा को आशीर्वाद देते हैं।


पुत्र रोहिताश्व को भी जीवित करते हैं,

उनका राज_पाठ पुनः वापस किया जाता है।


संसार में ऐसा सत्य वादी राजा कभी भी नहीं हुआ था,

और न ही होने की कोई संभावना है।


सृष्टि के अन्त तक राजा हरिश्चंद्र का नाम चलता रहेगा ही,

स्वर्ण अक्षरों में पन्नों पर सत्यवादी नाम दर्ज रहेगा।


लोग भूले से भी भूल नहीं सकते हैं,

कभी भी श्रद्धा और विश्वास कम नहीं कर सकते हैं।


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