राही का सफर
राही का सफर
क्यों भटकता है राही
दर - दर की चौखट
क्यो चलता है बेमतलब
इन कुछ पल के अंगारो पर
इनमे अपनी खुशी ना ढूंढो
तुम खुद भी इनमे खो जाओगे
समय निकल जाने पर राही
फिर बाद मे तुम पछताओगे
मंज़िल तुम्हारी बहुत दूर है
बहुत हमसफर मिल जाएँगे
पर कर लो तुम संकल्प अभी ये
वो तुमको डिगा ना पाएँगे
तुम खुद ही अंगार हो राही
जल कर दिखला दो दुनिया को
लग जाओ जी जान से जुट कर
तोड़ दो अपनी हर मुश्किल को
तुझमे शोला भरा हुआ है
जलकर अब दिखलाना होगा
कर लो खुदा से इबादत सारी
उनको साथ तुम्हारे आना होगा...।
